चित्रकूट धाम
चित्रकूट प्राचीन काल से ऋषियों मुनियों तपस्वियों की अदभुत साधना स्थली रही है एक तरफ जहाँ मन्दाकिनी गंगा की कल - कल , छल - छल की मधुर ध्वनि , पक्षियों का कलख , वन्य पशुओं की भयावह गर्जना , और दूसरी तरफ नदी वन पर्वत झरने और गुफाये अपनी प्राकृतिक सौन्दर्यता से हर किसी संसारिक से ऊवे प्राणियों को सुख शान्ति की दृष्टि से मन को प्रभावित करती है । चित्रकूट अध्यात्मिक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण केन्द्र स्थली है जिसको लक्ष्य बनाकर महर्षि , विद्वान , कवि एवं साहित्यकार अपनी उन्मुक्त लेखनी से अपने विचार भावनाओं की अभिव्यक्ति की है । आदिकवि महर्षि वाल्मीकि , गोस्वामी तुलसीदास , रहीम कवि तथा तानसेन जैसे ईश्वर भक्तों ने इस पावन धरती से अध्यात्मिक उर्जा प्राप्त किया है कविवर रहीम ने कहा है । -
चित्रकूट में रमिरहे , रहिमन अवध नरेश ।
जापर विपदा परत हैसो आवत यहिदेश ।।
गोस्वाती तुलसीदास जी ने ईश्वर का दर्शन चित्रकूट में साक्षात् प्राप्त किया है जिसके सम्बन्ध में गोस्वामी जी ने कहा है ।
चित्रकूट के घाट में भइ संतन की भीर ।
तुलसीदास चन्दन घिसै तिलक देत रघुवीर ॥
इतना की नही गोस्वाती तुलसीदास जी ने चित्रकूट को महिमा पर लिखा है ।
भवभुजंगतुलसी नकुल , हसत ज्ञान हर लेत ।
चित्रकूट एक औषधि , चितवत करत सचेत ॥
चित्रकूट एक औषधि , चितवत करत सचेत ॥
चित्रकूट के स्वरूप पर चित्रकूट महात्म्यम् में कहा गया है ।
सुवर्ण कूटं , रजिताभि कूटं , माणिक्य कूट मणिरत्न कूटं ।
अनेक कूटं बहुवर्ण कूटं , श्री चित्रकूटं शरणं प्रपद्ये ।।
इस प्रकार चित्रकूट में विभिन्न प्रकार की पर्वत श्रेणियों से युक्त चित्रकूट है । गोस्वाती तुलसीदास जी ने कामदगिरि के सम्बन्ध में लिखा है ।
कामदगिरि भै रामप्रसादा ।
अवलोकत अपहरत विषादा ।।
अर्थात् कामदगिरि श्री राम की कृपा से इतने पवित्र हो गये जिनके दर्शन मात्र से दुख दूर हो जाते है । जिसको निम्न श्लोक द्वारा और भी स्पष्ट किया गया है |
कामदगिरि भै रामप्रसादा ।
अवलोकत अपहरत विषादा ।।
अर्थात् कामदगिरि श्री राम की कृपा से इतने पवित्र हो गये जिनके दर्शन मात्र से दुख दूर हो जाते है । जिसको निम्न श्लोक द्वारा और भी स्पष्ट किया गया है |
चित्रकूटालयं राम इन्द्रानन्द मन्दिरम् ।
वन्दे श्री परमानन्दं भक्तानां अभयप्रदम् ॥( पद्म पुराण)
चित्रकूट भगवान श्रीराम का घर है जो इन्द्र के निवास का जहाँ सुख का अनुभव होता है । जो भक्तों को परम आनन्द एवं अभय प्रदान करता है । इसी कारण तुलसी दास जी लिखते है ।
चित्रकूट सब दिन बसत प्रभु सिय लखन समेत ।
रामनाम जपजाप करि तुलसी अभिमत देत ॥
इसी कारण चित्रकूट की महिमा का गान पर्वतराज हिमालय भी करते हैं । क्योंकि कहा गया है
शैल हिमांचल आदिक जेते , चित्रकूट जस गावहितेते ।
वास्तव में चित्रकूट गिरि सर्वश्रेष्ठ है ।
चित्रकूटों गिरिः श्रेष्ठः श्री राम पदभूषिता ।

टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें