सती अनुसुइया आश्रम



           

 सती अनुसुइया आश्रम 

 
सती अनुसुइया आश्रम :  रामघाट से दक्षिण की ओर 14 किमी की दूरी पर सती अनुसुइया आश्रम स्थित है । यहाँ आने के लिये बस , टैक्सी सेवाए सुलभ हैं ।
 यह आश्रम अत्यंत पावन है । यहाँ तप श्रेष्ठ अत्री ऋषि अपनी धर्मप्राण पत्नी महासती अनुसुइया सहित निवास करते थे । 
वे अहर्निश ईश आराधना में लीन रहते थे । महर्षि वाल्मीकी के विवरणअनुसार एक बार यहाँ 10 वर्षों तक वर्षा नहीं हुई ।
 इस अनावृष्टिवश यहाँ भयंकर दुर्भिक्ष ( अकाल ) पड़ा । अन्न , जल के भीषण अभाव वश जगल निरंतर दग्ध होने लगा । 
पशु - पक्षी एव समस्त जीवधारी त्राहि - त्राहि करने लगे । यह देखकर महासती अनुसुइया क्लेश विदग्ध होने लगी ।तब उन्होंने कठोर नियमों का पालन करते हुए उग्र तपस्या की और अपने तप बल से अलंकृत होकर यहाँ फल , मूल उत्पन्न कर हरीतिमा व्याप्त की तथा मंदाकिनी की धारा प्रवाहित कर वन स्थित समस्त ऋषिजनों के क्लेशों कष्टों का निराकरण किया ।
 वर्तमान समय में भी यहाँ पर्वत श्रेणी गर्भ से सहस्त्रों जलश्रोत निरंतर निर्झरित होते रहते हैं । यह समस्त जलश्रोत एक कुंड में विलीन होकर आगे मंदाकिनी नदी का रूप धारण कर प्रवाहित होते हैं ।
 मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम यहाँ महर्षि अत्री और महासती अनुसुइया के दर्शनार्थ पधारे थे । तब सती अनुसुइया जी ने सीताजी को सतीत्व की महिमा और महत्व से अवगत कराया था । 
इस प्रसंग का वर्णन गोस्वामीजी ने इस प्रकार किया है-

 एकई धर्म एक व्रत नेमा ,काम वचन मन पति पद प्रेभा । 
बिनु श्रम नारि परमगली लहई ,पतिव्रत धर्म छाडि छल गहई ।।  
 सहज अपावनि नारि पति सेवत शुभ गति लहई ।
जस गवत श्रुति चारि अजहु तुलसी का हरि प्रिय।।

 यहीं से सागवान के विशालकाय सघन वृक्षो से आच्छादित प्रसिद्ध दंडक वन प्रारन हो जाता है ।
 इसी स्थल से प्राचीन विवरण के अनुसार रावण के राज्य की सीमा भी प्रारभ हो जाती थी ।
रावण ने अपनी राज्य सीमा के रक्षणार्थ, विराध और खर जैसे दुर्गम शक्तिशाली राक्षसो को नियुक्त कर रखा था ।
 दंडक वन का नाम दडकारण्य भी है । उस समय काल में यह वन प्रदेश राक्षसों के भयंकर उत्पात और उत्पीड़न से ग्रसित था । इसी कारणवश महर्षि अत्री ने श्री राम से कहा था - 

रावणावरज . कश्चिल्खरो नामेह राक्षसः 
उत्पात्य तापसान्सवनि जनस्थान निवासिना ।।
धृष्टश्च जितकाशीच नृशंसः पुरूसादक 
 अवविप्तश्च पापश्चत्वाच तातन मृष्यते ।।

हे प्रभु यहाँ इस सघन वन प्रदेश में दशानन रावण का अनुज खर नामक राक्षस है जिसने भयानक उत्पीड़न मचा रखा है । ऋषियों को उत्पीड़ित कर रखा है । वन स्थान में रहने वाले तापसों को उत्पीड़ित कर रखा है । वह अत्यंत कुटिल , क्रुर , विजयोन्मत , अहंकारी तथा नरभक्षी है । 
यहाँ की हरीतिमा आच्छादित पर्वत श्रेणी मनोरम एवं दर्शनीय है ।
















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