जब त्रेता युग में भगवान राम , लक्ष्मण और माता सीता को वनवास हुआ था तब भगवान् ने साढ़े ग्यारह वर्ष चित्रकूट में ही व्यतीत किया था , तो उनके वनवास काल में चित्रकूट में आने की खुशी में लोग यहां पे मानते इस पर्व को मनाया जाता है,और और इस पर्व को मनाए जाने की दूसरी सबसे बड़ी वजह जब भगवान का वनवास पूरा हो जाता है ,तब भगवान् चित्रकूट से होते हुए अयोध्या को जाते है । तो उनके वनवास खत्म होने तथा वनवास से वापस चित्रकूट आने की खुशी में लोग ,यहां पे इस पर्व को मनाते है ।
चित्रकूट पे हर वर्ष दीपवाली में बहुत मात्रा में श्रद्धाुओं का आगमन होता है , अतः इसके आस पास आने वाले सभी मंदिरों में भीड़ देखी जा सकती है ,अतः हर वर्ष लोग चित्रकूट में आ कर दीप दान करते है । चित्रकूट में हर वर्ष दिवाली को बहुत ही धूम धाम से मनया जाता है , दीपावली पर यादव समाज के लोग अपना नृत्य तथा कला दिखते है ,यह कला बहुत ही रोमांचक होती हे ,जिसे देखने कि लिए भी कुछ लोग चित्रकूट आते है।
यहां दीपावली के समय चित्रकूट में 5 दिनों का मेला भी लगाया जाता है,जिसके कारण यहां पे आपको बहुत ज्यादा मात्रा में आपको अनेकों प्रकार की दुकानें भी देखने के लिए मिलती है ।
इन पांच दिनों में आपको यहां सुरक्षा भी देखने के लिए मिलते है ,जिससे श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो इसका खास इंतजाम किया जाता है । चित्रकूट परिसर में आने वाले सभी श्रद्धालुओं के रुकने के लिए जगह जगह पर आपको अनेकों धर्मशाला, अतिथि ग्रह और रेन बसेरा भी बनाया जाता है । चित्रकूट एक श्रद्धा का केंद्र है ,और यहां पे श्रद्धालुओं की आपर श्रद्धा भी देखने के लिए मिलती है । इस पर्व पर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के लोगो को आगमन सबसे ज्यादा होता है
सकल रिषिन्ह सन पाइ असीसा ।
चित्रकूट आए जगदीसा ॥
तहँ करि मुनिन्ह केर संतोषा ।
चला बिमानु तहाँ ते चोखा ॥
सम्पूर्ण ऋषियोंसे आशीर्वाद पाकर जगदीश्वर श्रीरामजी चित्रकूट आये । वहाँ मुनियोंको आशीर्वाद लिया । [ फिर ] विमान वहाँसे आगे तेजीके साथ चला ॥
अतः चित्रकूट आप भी एक बार आए और यहां पे दीपावली में दीपदान कर अपने जीवन को सफल बनाए।





टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें