कामदगिरि परिक्रमा ( कामतानाथ जी )
कामदगिरि परिक्रमा एक छोटी सी पहाड़ी है । लेकिन उसकी श्रद्धा उतनी ही बड़ी है ।
यह परिधि पाँच किमी. है । इस पर्वत पर कामना नामक देवी की कामना देवी के नाम से प्राचीन प्रतिष्ठा थी ।
अपने वनवास काल में श्री राम जब चित्रकूट पर्वत पधारे तब उन्होंने इस देवी की पूजा अर्चना की थी । कामना देवी ने भगवान श्री राम की कामना पूरी की थी क्योकि भगवान श्री राम को ऐसे राक्षसों का वध करना था ।
जिन्होंने देवताओ द्वारा प्रदान किये गये वरदानों के बल पर मृत्यु को भी अपने वशीभूत कर रखा था ।
ऐसे ही राक्षसों का वध करने के लिये श्री राम को कामना देवी की आराधना करनी पड़ी थी । कामना देवी की आराधना से श्री राम की मनोकामना पूर्ण हुई थी ।
भगवान राम को यह स्थान विशेष प्रिय था । इस पर्वत पर स्थित इस मंदिर में प्रवेश करने के लिये चारों दिशाओं में चार द्वार स्थित हैं । आज भी चारों द्वार मुखारविंद के नाम से प्रसिद्ध है ।
श्री राम और भरत का मिलन इसी स्थान पर हुआ था । आज भी रामजी और भरतजी के पदचिन्ह यहाँ पत्थरों पर अकित है ।
कथन है कि जब श्री राम और श्री भरत का यहाँ मिलन हुआ था ,
तो उनके प्रवाहित प्रेमाश्रुओं से पत्थर भी मोम की तरह पिघल गये थे ।
इसी महत्ववश प्रेम और त्याग की इस पावन तपोभूमि की श्रद्धालु भक्त नग्न चरण अर्थात पदमाण रहित बिना जूता पहने परिक्रमा करते है और अपनो श्रद्धा भक्ति ,श्री राम को अर्पित करते हैं । इस पवित्र पर्वत श्रेणी के दर्शन लाभ से ही मनुष्यों का भय ,ताप उन्मूलन अर्थात ,नाश होता है ।
गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार -
कामद भेगिरि रामप्रसादा । अवलोकत अपहरत विषादा ।।

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