श्री हनुमान धारा मंदिर चित्रकूट
चित्रकूट धाम में स्थित यह मंदिर बहुत ही धार्मिक भावनाओं से युक्त है।
यह मंदाकिनी की एक पर्वत श्रेणी पर यह स्थान स्थित है । यह रामघाट से चार कि.मी. की दूरी पर है ।
ऊपर जाने के लिये 360 सीदियाँ चढ़नी पड़ती है ।
लंका दहन के पश्चात तीब अग्नि उष्मा से परेशान, श्री हनुमानजी ने भगवान श्री राम से निवेदन किया था ,हे राघवेन्द्र मेरे समस्त शरीर मे अग्नि ऊष्मा की विदग्धता व्याप्त है ।
इसके शमनार्थ कृप्या कोई मुक्ति बताए । तब भक्त प्रवर श्री राम ने हनुमान जी से कहा था - आप चित्रकूट पर्वत जाइये वहाँ आपके ऊपर अमृत तुल्य शीतल स्निग्ध जलधारा गिरेगी।
इससे आपके शरीर में व्याप्त लंका दहन ऊष्मा का शमन होगा । इसक प्रतीक के रूप में आज भी हनुमानजी की वाम भुजा पर अविरल जलधारा प्रवाहित होती रहती है।
इस जलधारा को दो कुंडो में एकत्रित किया गया है ! इसका जल शीतल एवं मृदु है ।
यह एक प्राकृतिक एव दैवी आश्चर्य है कि इस जल धारा के निर्गम का श्रोत अदृश्य है । साथ ही यह भी अस्पष्ट है कि कुंड के बाद यह जलधारा कहाँ अदृश्य हो जाती है ।









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